क्रम कर उदार कर
सृष्टि का विकास कर
ना घमण्ड अहंकार कर
सृष्टि का विकास कर..||
भूमि मातृ चूम कर
तू जगत कल्याण कर
ना अधर्म कर ना विनाश कर
सृष्टि का विकास कर..||
ना फरेब तिरस्कार कर
भाव इतने पाक कर
तू भला एक नाम कर
सृष्टि का विकास कर..||
पूंजी अपनी बांट कर
तू जगत कल्याण कर
ना द्वेष कर ना उपहास कर
सृष्टि का विकास कर..||
क्रोध अपना शांत कर
तू क्षमादान कर
ना हठ कर ना पाप कर
सृष्टि का विकास कर..!!
Nice lines I love it
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