अपना मानत सब आपन होत है
ना मानत सब गैर
कड़ी कड़ी जोड़त सब एक है
जब टूटत सब गैर।।
जग जग घुमत
ना खुदसा कुछ मिलत है
जब मिलत होत ना उसका मोल
चंचल यही होत जीवन है
जो समझो वही अनमोल।।
कर्म कांड सब करत है
जो फसियो वही चोर
जीवन माया सब मोहमाया है
जो फसियो वही चोर।।
कंकड़ से कंकड़ टकराए
जब जलत होत उबेर
घोर भले अंधियारों रहे
जब जालियों होत सवेर।।
आपन को आपन मैं खोज
खुदकी की दुनियां खुद मैं खोज
यहां कोई नही है तोके साथ
तू खुदकी कमियां खुदही खोज।।
— arzdilse
Nice
ReplyDeletethis is very nice
ReplyDeletekeepit up
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