कभी देखा नहीं उसको,
ना कभी जान पाया मैं उसको।
रिश्ता क्या है मुझसे उसका?
उसने सब छीना — तब भी रहा मैं उसका,
और जब दिया — तब भी रहा मैं उसका।
क्यों मैं जगह-जगह जाता हूँ, उसको देखने?
क्या मिला मुझे, होकर उसका?
क्यों इस भीड़ में खोया रहता हूँ मैं तन्हा?
क्यों सब कुछ भुलाकर भी,
सिर्फ़ ख्याल आता है उसका?
नहीं, नहीं — मैं किसी लड़की, किसी शख्स की
बात नहीं कर रहा यहाँ।
मैं तो बात कर रहा हूँ "उसकी",
जिसने तीनों कालों को है रचा,
जिसने मुझको, तुझको, सबको है गढ़ा।
Nice lines
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