*प्रणाम जगत के नाथ*
प्रणाम जगत के नाथ तुमको
मुझको ज़रूरत बड़ी तुम्हारी है
एक कोना - कोना नहीं बचा अब
जहाँ दुख–पीड़ा ना भारी है।
प्रणाम जगत के नाथ तुमको
मुझको तृष्णा बड़ी तुम्हारी है
मानव का मन भटक रहा अब
ये कलियुग सब पर भारी है।
द्वार खड़ा है पाप-पाखंड,
बनकर बाबा भेष वो रावण है
बच्चियों पर भी ना करे रहम
ये मानव कितना दुष्कर्मी है।
प्रणाम जगत के नाथ तुमको
मुझको लालसा बड़ी तुम्हारी है
भक्तों पर है भिर पड़ा
अब तुम्हरी शरण निवारी है।
कहाँ जाएँ हम दुख की धारा में,
जीवन सूखा रे बिन पानी है।
आशीष धरा पर बरसा दो प्रभु,
अब सबको जरूरत बड़ी तुम्हारी है।
— रंजित शर्मा

NICE
ReplyDelete